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दोपहिया वाहनों के साइलेंसर में बदलाव पर इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सख्त रुख अपनाया है. साइलेंसर मॉडिफिकेशन के जरिए कानफोड़ू आवाज पैदा करने को अदालत ने दूसरों की आजादी में खलल करार दिया है. अदालत ने उत्तर प्रदेश सरकार से कहा है कि वह ऐसी बाइक्स चलाने वालों के खिलाफ सख्त ऐक्शन ले. कानून के तहत ऐसे बदलावों की अनुमति नहीं है. ऐसे साइलेंसर्स धुआं तो ज्यादा उगलते ही हैं, तय सीमा से कई गुना ज्यादा आवाज पैदा करते हैं जिससे दूसरों को परेशानी होती है.
कई गुना तेज हो जाती है आवाज
पर्यावरण (संरक्षण) नियम, 1986 के अनुसार, मोटरसाइकिल और स्कूटर्स के लिए अधिकतम ध्वनि सीमा 80 डेसिबल है. फैक्ट्री मॉडल के स्टॉक साइलेंसर में तीन फिल्टर होते हैं जो कम आवाज करते हैं. मगर मॉडिफाइड साइलेंर्स के चलते कम से कम 120 डेसिबल की आवाज निकलती है. ऐसे एक्जॉस्ट सिस्टम्स को लगाने का खर्च कुछ हजार रुपये होता है. कुछ बाइक्स में पटाखों जैसी आवाज करने वाले साइलेंसर्स भी लगाए जाते हैं.
हाई कोर्ट ने क्या कहा?
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने रॉयल एनफील्ड (बुलेट), हाले डेविडसन समेत कई हाई-पावर बाइक्स की तेज आवाज का संज्ञान लिया है. कोर्ट ने कहा कि बाइक्स के साइलेंसर में बदलाव का आजकल फैशन हो गया है. इससे बीमार लोगों, बुजुर्गों और बच्चों को बड़ी परेशानी होती है. अदालत ने MV ऐक्ट की धारा 52 के हवाले से कहा कि फैक्ट्री मॉडल में बदलाव पर बैन है. अदालत ने इसी अधिनियिम के अन्य प्रावधानों का जिक्र करते हुए कहा कि यह नियम विदेशी बाइकों पर भी लागू होते हैं.
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