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आपने कीमत सामान की बोली लगती हुई देखी होगी, मकान की या फिर ईद के मौके पर बकरों की। लेकिन क्या आप इस बात पर यकीन मानेंगे की कोई कबतूर करोड़ में बिक सकता है। 1 या 5 करोड़ में नहीं बल्कि एक मदा कबूतर 14 करोड़ रुपये में बिकी है। जो कि बेहद ही अनोखी और अपने आप में एक बड़ी बात है।
दरअसल पश्चिमी यूरोप का एक देश है जिसका नाम बेल्जियम है। उसके एक शहर में रेस लगाने वाले कुछ कबूतरों की हाली ही में नीलामी हुई थी। इसी में एक मादा कबूतर को 14 करोड़ 15 लाख रुपये से ज्यादी कीमत में खरीद लिया गया। ये काम चीन के एक आदमी ने किया है। जिस कबूतर को खरीदा गया है उसका नाम न्यू किम है। इस नीलमी में उसे खरीदे जाने के बाद मादा कबूतर दुनिया की सबसे कीमती कबूतर कहला रही है। लेकिन किसी कबूतर की इतनी महंगी बोली लगना अपने आप में हैरानी वाली बात है और इस मादा कबूतर में ऐसी क्या खासियत है जिसके चलते वो इतनी महंगी बिकी है आइए जानते हैं उसके बारे में यहां-
- न्यू किम एक रेसर कबूतर है जोकि 2018 में कई प्रतियोगिता जीत चुकी है, जिसमें नेशनल मेडल डिस्टेंस रेस भी शामिल है।
- न्यू किम जैसे कबतूरों की खासयितों की बात की जाए तो वो काफी तेजी से उड़ पाने में सक्षम होते हैं।
- ये रेसिंग कबूतर 15 साल से अधिक समय तक जिंदा रह सकते हैं।
- आपको ये जानकार हैरानी होगी कि इन कबूतरों पर सटे लगते हैं और इनकी बदौलत यूरोप और चीन के अलावा कई देश पैसे कमाते हैं और गंवाते भी हैं।
- पहले ये खिताब आर्मंडो नाम के एक नर कबूतर के पास था जिसके लिए 1.25 मिलियन यूरो का भुगतान हुआ था। आर्मंडो को कबूतरों का लुईस हैमिल्टन भी बोलते थे। लेकिन न्यू किम ने उसका रिकॉर्ड तोड़ दिया।
- चीन में कबतूरों की रेस पिछले कई सालों से काफी ज्यादा लोकप्रिय बन रही है। एक से बढ़कर एक लोग बोलियां इसमें लगाते हुए नजर आते हैं क्योंकि वो रेसिंग कबूतरों से बच्चा पैदा करना चाहते हैं।
- ऐसे में न्यू किम का नया मालिक इसका इस्तेमाल प्रजनन के लिए कर सकता है।
राजा-महाराजा के लिए संदेशवाहक बने कबूतर
इतिहास के पन्नों पर यदि नजर डाली जाए तो कबूतर को एक संदेशवाहक के तौर पर भी जाना जाता था। डाक विभाग का जब नामों निशाना नहीं था तब राजा-महाराजा ही नहीं बल्कि अंग्रेज अधिकारी भी अपने संदेश किसी को भेजने के लिए कबूतरों का इस्तेमाल करते थे। लेकिन हर कबूतर का इस्तेमाल संदेश भेजने के लिए नहीं होता था। बल्कि सिर्फ रॉक पिजन या पिर होमिंग पिजन का ही इस्तेमाल किया जाता था। अब आप सोच रहे होंगे कि उन्हें किसी का एड्रेस आखिर कैसे पता चलता था। तो आपको बता दें कि पालतू कबूतर को चाहे आप कहीं पर भी क्यों न छोड़ दे लेकिन वो लौटता आखिर अपने घर पर ही है। ऐसे ही राजा-महाराजा अपने मित्र राजा या फिर महाराजाओं के पालतू कबूतर को मंगवा लिया करते थे ताकि वक्त आने पर संदेश के साथ उन्हें वापस भेजा जा सकें।
द्वितीय विश्व युद्ध में मौसम का लगाते थे पता
बहुत कम लोगों को ये पता है कि दूसरे विश्व युद्ध के वक्त बेल्जियम के पास कम से कम 2.40 लाख रेसिंग कबूतरों की एक बहुत बड़ी फौज थी। उनका काम होता था जरूरी चीजों का लाना और पहुंचाना। उस वक्त कबूतरों की क्या अहमियत थी उसके बारे में बताए तो इसको लेकर एक फेडरेशन में भी बनाया गया था। लगभग 50 साल पहले तक तो फ्रांस और स्पेन में मौसम से जुड़ी सुचना देने के लिए कबूतरों का इस्तेमाल किया जाता था। जो जानकारी इससे जुड़ी आती थी वो उनके पैरों में लगे उपकरणों में दर्ज होती थी।
बॉलीवुड में भी चला कबूतरों का जादू
पांच हजार फीट से अधिक की ऊंचाई पर उड़ने वाले कबूतर बॉलीवुड की दुनिया में भी काफी धमाल मचाते हुए नजर आए थे। कबूतरों का इस्तेमाल तो कई बॉलीवुड फिल्मों में हुआ है। इसमें से एक प्रसिद्ध फिल्म का नाम है मैंने प्यार किया। इसके अलावा फिल्म मैं प्रेम की दीवानी हूं में भी कबूतर नजर आया था। इतना ही नहीं फिल्म दिल्ली 6 के गाने मस्ककली में एक्टर सोनम कपूर ने कबूतर संग डांस भी किया था।
भगवान शिव और कबूतर की कथा
अमरनाथ से जुड़ी एक कथा जिसे बहुत कम लोग जानते हैं। दरअसल भगवान शिव जब माता पर्वती को अमर कथा सुना रहे थे तब उन्हें बीच में ही नींद आ गई और वो वहीं सो गई। लेकिन भगवान शिव को इस बात का अंदाज नहीं था कि वो कहानी गुफा में बैठे दो सफेद कबूतर सुन रहे थे। भगवान शिव को लगा कि माता कहानी को सुन रही है। ऐसा करते हुए भगवान शिव ने दोनों कबूतरों को पूरी कहानी सुना दी। जब कथा खत्म हुई तब भगवान का ध्यान माता पर गया और वो गुस्सा हो गए। वो दोनों कबूतरों को मारने के लिए उनके पीछे दौड़ पड़े। तभी उन्होंने भगवान से कहा कि प्रभु हमने तो आपसे अरम होने की कथा सुनी है। आप यदि हमें मार देंगे तो ये कथा गलत साबित हो जाएगी। इसके बाद भगवान ने उन्हें छोड़ते हुए कहा कि तुम हमेशा इस स्था पर माता पार्वती के प्रतीक चिन्ह के तौर पर रहोगे। इस जोड़े के अमर हो जाने के बाद भी इनके दर्शन यात्रियों को हो जाते हैं।
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