Story Content
इस बार दिपावली शनिवार को मनाई जा रही है। शनिवार की रात्री को दिपावली का पर्व एवं उसी शाम मंगल का मीन राशि में वक्रि से मार्गी हो जाने पर, शनिवार युक्त अमावस्य की रात को दस महाविद्याओं में से एक धूमावती माता का अनुष्ठान करने से सर्व प्रकार की भूत, प्रेत बाधा। वशीकरण, मारण, उच्चाटन, शत्रुबुद्धि नाश, विवादों में विजय, न्यायलय में विजयादि, एवं कोई भी दुर्गाम कार्य को साध्य किया जा सकता है। लंंबे समय से चले आ रहे दुर्भाग्य को दूर करने हेतु, दु:ख एवं दरिद्रता को दूर करने हेतु भी इनका अनुष्ठान् किया जाता है।
धूमावती देवी जिन्हे ज्येष्ठा लक्ष्मी भी कहा गया है, दशमहाविद्याओं में सातवी महाविद्या है। इस देवी का स्वरुप वृद्धा, कृषकाय, एवं विधवारुप है। शूप इनका महास्त्र है। सुहागिन स्त्रीयों को इनका दर्शन पूजन नही करना चाहिए। यह भयानक रुप वाली देवी है।
इन देवी का स्थायी आवाहन नही होता है। अत: इनके लंबे समय तक विराजमान करने की भावना नही करना चाहिए। इनसे ऐसी प्रार्थना करनी चाहिए की यह हमारे समस्त दुर्भाग्य को समेटकर विदा हो जाएं। देवी प्रसन्न होकर समस्त सुख प्रदान करती है।
श्मशान में चिता भी भस्म से शिवलिंग का निर्माण कर भैंस की दुध से एवं अन्य पूजन सामग्री से इनका पूजन होता है। इनकी पूजन में नीम की पत्तियां, एवं काक पंखों का प्रयोग होता है। इनकी पूजन को सार्वजनिक रुप से नही लिखा जा सकता है।
यह साधना लेकिन कोई नया व्यक्ति नही कर सकता है, गुरु से दिक्षाा प्राप्त एवं सभी प्रकार के तंत्रों को जानने वालों को ही यह साधना करना चाहिए। माता धूमावती को यह पूजन स्वयं के प्रयास से करना सर्वथा निषिद्ध है, कभी इसको करने का अकेले या बिना गुरु दिक्षा के इसको करने का प्रयास हानिकारक हो सकता है।
नोट- यह लेख केवल जानकारी के लिए बनाया गया है। इस्तेमाल अपनी सोच-समझ से करें।
Comments
Add a Comment:
No comments available.