आज 18 नवंबर का दिन बेहद ही ज्यादा खास है। ऐसा इसलिए क्योंकि इस दिन से ही महापर्व छठ की शुरुआत हो रही है। चार दिन तक चलाने वाले इस त्योहार की शुरुआत नहाया-खाय से होती है। इसमें पूजा की जो विधि होती है वो इतनी आसान नहीं होती है। 36 घंटे के मुश्किल निर्जला व्रत में छठ मैया और सूर्य भगवान की पूजा पूरे विधि-विधान से होती है। पूजा के अंदर डूबते हुए और उगते हुए सूर्य भगवान को अर्घ्य देने का काफी महत्व है। इसके बिना पूजा अधूरी मानी जाती है। हिन्दू कैलेंडर पर यदि नजर डाली छठ व्रत साल में दो बार आता है। पहले चैत्र शुक्ल षष्ठी और दूसरा कार्तिक शुक्ल पुष्ठी के वक्त। लेकिन दिवाली के बाद आने वाले छठ पूजा की काफी ज्यादा अहमियत।
क्या है छठ पूजा का महत्व?
इस त्योहार में सूर्य भगवान और छठी मैया की पूजा की जाती है। इससे प्रसन्न होकर मैया शादीशुदा जोड़ों को संतान प्राप्ति का आशीर्वाद देती है और उनके जीवन में खुशियां भर देती है। वहीं, सूर्य भगवान व्रत रखने वालों को निरोगी और सुखी जिंदगी बिताने का आशीर्वाद देने का काम करते हैं।
जानिए किस दिन होती है कौन सी पूजा?
पहले दिन यानी 18 नवंबर को नहाय-खाय है, 19 नवंबर को खरना, 20 नवंबर को छठ पूजा और 21 नवंबर को सुबह सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा।
छठ पूजा के दिन पूजा का शुभ मुहूर्त:
- 20 नवंबर 2020 के दिन सूर्योदय सुबह 6:48 AM बजे और सूर्यास्त 5:26 PM बजे है।
- वहीं, हम आपको ये जानकारी दे दें कि षष्ठी तिथि 19 नवंबर को रात 9:58 से शुरू हो जाएगी। इसके बाद 20 नवंबर की रात 9:29 बजे तक रहने वाली है।
पूजा और व्रत की पूरी विधि
- नहाया खाय के दिन सुबह उठकर स्नान करने के बाद नए कपड़े धारण किए जाते हैं। व्रत रखने वाले सात्विक भोजन खाते हैं। इसके बाद ही पूरा परिवार खाना खाता है।
- दूसरे दिन खरना के वक्त सूर्य भगवान को संध्या अर्घ्य दी जाती है। छठी मैया की पूजा इस दिन होती है। इस खास पर्व पर ठेकुआ और कसार बनाया जाता है। इसके बाद पूजा के डाल घाट पर लेकर पहुंचा जाता है और वहां स्नान करने के बाद व्रती डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य देने का काम करती है और पूजा करते है। जब अर्घ्य दिया जाता है तो उसमें दूध और गंगा जल प्रयोग किया जाता है। वहां मिट्टी और ईट से बनी छठी मैया की पूरी विधि-विधान से पूजा होती है।
- इसके बाद अगली सुबह जिन्होंने व्रत रखा होता है वो फिर से नदी या फिर अपन आसपास मौजूद एक तालाब में स्नान करते हैं और फिर उगते हुए सूर्य भगवान को अर्घ्य देते हैं और पूजा करते हैं। इन सबके बाद प्रसाद बांटा जाता है। फिर से व्रत रखने वाले श्रद्धालु पारण करके अपने व्रत को पूरा करते हैं।
इस मंत्र का करें उपयोग
ऊँ सूर्याय नमः या ऊँ आदित्याय नम: मंत्र का जाप करें।
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