Story Content
बकरीद को ईद उल अजहा के नाम से भी जाना जाता है. यह मुस्लिम समुदाय का पर्व होता है. इस साल बकरीद रविवार 10 जुलाई 2022 को मनाई जाएगी. बकरीद में बकरे की कुर्बानी देने की परंपरा सालों से चली आ रही है. इस के मौके पर बड़ी संख्या में मुस्लिम समुदाय के लोग बकरे की कुर्बानी जरूर देते हैं. हालांकि बकरे के अलावा दूसरे जानवरों की भी बली दी जाती है. लेकिन बकरीद पर बकरे की कुर्बानी का ही विशेष महत्व होता है.
क्यों मनाया जाता है बकरीद
इस्लाम से जुड़ी हुई मान्यताओं के अनुसार, हजरत इब्राहिम को अल्लाह का पैगंबर माना गया है. ऐसी मान्यता है कि हजरत इब्राहिम अपनी पूरी जिंदगी भलाई के कामों में जुटे रहें. कहा जाता है कि इब्राहिम ने अपना पूरा जीवन समाज के भलाई के नाम ही कर दिया था. इब्राहिम को 90 साल की उम्र तक कोई भी संतान नहीं था. कहा जाता है कि खुदा की इबादत करने से उन्हें एक पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई थी जिसका नाम इस्माइल था. उसी दौरान हजरत इब्राहिम को एक सपना आया जिसमें उन्हें कुर्बानी देने के लिए कहा गया. इस्लामिक मान्यताओं के अनुसार पहले तो उन्होंने ऊंट की कुर्बानी दी लेकिन उन्हें फिर से सपना आया कि अपनी सबसे प्यारी चीज की कुर्बानी दो. फिर इब्राहिम को यह महसूस हुआ कि उनका सबसे प्यारा तो उनका पुत्र ही है. इस बात का जिक्र उन्होंने अपनी पत्नी से किया. सपने को हकीकत करने की नियत से इब्राहिम अपने पुत्र इस्माइल को कुर्बान करने के लिए आगे बढ़े. कहा जाता है कि अल्लाह ने उनका समर्पण देखकर उनके बेटे की कुर्बानी को बकरे की कुर्बानी में बदल दिया.
इब्राहिम ने आंख पर पट्टी बांधकर दी कुर्बानी
इस्लामिक मान्यताओं के अनुसार हजरत इब्राहिम जब बेटे की कुर्बानी दे रहे थे तब उन्होंने अपनी आंखों पर काली पट्टी बांध ली थी. जब उन्होंने कुर्बानी दे दी और आंखों से पट्टी हटाई तब उन्होंने अपने बेटे इस्माइल को खेलते हुए देखा. जिस जगह पर बेटे की बलि दे रहे थे उस जगह पर बकरे की बलि हो गई थी. इस्लाम से जुड़े हुए तथ्य बताते हैं कि अल्लाह ने हजरत इब्राहिम का समर्पण भाव देखकर ऐसा चमत्कार किया था. तभी से मुस्लिम समुदाय के लोगों के बीच बकरीद का पर्व मनाने की परंपरा चली आ रही है.
Comments
Add a Comment:
No comments available.