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सीमा की सुरक्षा में लगे जवानों का सीना भेद पाना अब दुश्मनों के लिए और अधिक मुश्किल होगा. भारतीय सैनिक एक हल्के बुलेट प्रुफ जैकेट (light bullet proof jacket) के साथ और भी तेज-तर्रार व फुर्ती से सीमा की सुरक्षा कर सकेंगें. दरअसल डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट ऑर्गनाइजेशन (डीआरडीओ) की तरफ से भारतीय सेना के लिए एक ऐसी बुलेट प्रूफ जैकेट (बीपीजे) तैयार की गई है जिस पर किसी भी हथियार का कोई असर नहीं होगा. उत्तर प्रदेश के कानपुर स्थित डीआरडीओ की लैब डिफेंस मैटेरियल्स एंड स्टोर्स एंड डेवलपमेंट एस्टैब्लिशमैंट की तरफ से तैयार इस जैकेट को सेना के लिए एक खास उपकरण करार दिया जा रहा है. जानिए ये जैकेट क्यों इतनी खास और क्यों सेना के लिए मददगार साबित होगी.
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सिर्फ 9 किलो की जैकेट
DMSRDE द्वारा तैयार की गई बुलेट प्रूफ जैकेट का वजन केवल 9 किलोग्राम है. यह जैकेट सेना की हर मांग को पूरा करता है जिसकी तलाश पिछले कई दशकों से की जा रही थी. इस जैकेट का नाम फ्रंट हार्ड आर्मर पैनल (FHAP) जैकेट दिया गया है. इस बुलेट प्रूफ जैकेट का टेस्ट चंडीगढ़ के टर्मिनल बैलिस्टिक रिसर्च लेबोरेटरी (टीबीआरएल) में किया गया है. बता दें ये जैकेट हर जरुरी स्टैंडर्ड पर खरी उतरी है.
नॉर्मल जैकेट का वजन 10 से 10.5 किलो
इस जैकेट की सबसे खास बात यह है कि यह जैकेट सैनिक के लिए आरामदायक तो है ही साथ ही इसका वजन भी कम से कम रखा गया है. जैकेट किसी भी संवेदनशील ऑपरेशन के दौरान हर सैनिक को ज्यादा से ज्यादा आराम देने साथ ही उनके जीवन की रक्षा भी करेगा. एक सामान्य बुलेट प्रूफ जैकेट का वजन 14 किलोग्राम से 16 किलोग्राम तक का होता है लेकिन जो बुलेट प्रूफ जैकेट भारतीय सेना के जवान और ऑफिसर पहनते है उनका वजन 10 से 10.5 किलोग्राम तक होता है. ऐसे में DRDO की यह जैकेट निश्चित रूप से सेना के लिए काफी मददगार साबित होने वाली है.
जैकेट में किया गया सॉफ्ट और हार्ड आर्मर प्लेट का प्रयोग
वजन कम करने की इस टेक्नोलॉजी की वजह से मीडियम साइज बुलेट प्रूफ जैकेट का वजन 10.4 से घटकर 9 किलोग्राम तक हो जाता है. इसे तैयार करने में बहुत ही खास मैटेरियल्स और जरुरी टेक्नोलॉजी को लैबोरेट्रीज में ही डेवलप किया गया था. रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने डीआरडीओ के सभी वैज्ञानिकों को इस सफलता पर बधाई दी है. इस नए आविष्कार के बाद अब सैनिकों के लिए बुलेट प्रूफ जैकेट्स बोझ नहीं रह जाएंगी. इस जैकेट में एक फाइबर की बनी सॉफ्ट आर्मर प्लेट और स्टील की बनी एक हार्ड आर्मर प्लेट का प्रयोग किया गया है.
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कैसे किया जाता है जैकेट को तैयार
बुलेट प्रूफ जैकेट को इस तरह से डिजाइन किया जाता है कि बुलेट की ऊर्जा कम या ना के बराबर हो जाती है. इसे कभी-कभी स्टील प्लेटों की मदद से तैयार किया जाता है लेकिन कभी-कभी अन्य तत्वों का उपयोग किया जाता है. अब केवलर का इस्तेमाल बुलेट प्रूफ जैकेट में होने लगा है. केवलर एक सिंथेटिक फाइबर है जो गर्मी से बचाता है और बहुत मजबूत होता है. यह हल्का भी है और इसलिए यह आज के समय में यह जैकेट की पहली पसंद बन गया है. केवलर का उपयोग मिलिट्री और असैन्य दोनों उद्देश्यों के लिए किया जा रहा है। इसके अलावा कुछ देशों में लकड़ी, सिरेमिक और पॉलीकॉर्बोनेट का भी उपयोग किया गया है.
1915 में आई थी जैकेट
प्रथम विश्व युद्ध के दौरान बुलेट प्रूफ जैकेट का पहला उपयोग किया गया था. उस समय अचानक युद्ध शुरू हो गया और सैनिकों के पास गोली से बचने के लिए कुछ भी नहीं था. 1915 में, ब्रिटिश सेना डिजाइन समिति द्वारा पहली आधिकारिक बुलेट-प्रूफ जैकेट के उपयोग की खोज की गई थी. कहा जाता है कि युद्ध में सैनिकों को 600 फीट प्रति सेकंड की गति से आने वाली गोली का सामना करना पड़ता था. इस तरह के बुलेट प्रूफ जैकेट का इस्तेमाल 1916 तक जारी रहा और उसी साल इसे प्लेट की मदद से बनाया गया. इस प्लेट का नाम ब्रेस्टप्लेट रखा गया था.
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