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भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के महानायक वीर कुंवर सिंह का आज जयंती है. 80 साल की उम्र में भी इन्होंने अंग्रेजो की वो हाल किया था, जिसके बारे में सोचना भी मुश्किल है. प्रथम स्वंत्रता संगाम में 25 जुलाई 1857 से लेकर 23 अप्रैल 1858 तक में उन्होंने लगभग 15 लड़ाईयां लड़ी और फिरंगीयों के नाक में दम कर रखा.
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बिहार के आरा इलाके के भोजपूर में इस महानायक का जन्म 13 नवंबर 1977 को हुआ था. इनके पिताजी का नाम बाबू साहबजादा सिंह और मां का नाम पंचरत्न कुंवर था.
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इस महानायक को बचपन से ही बंदूक चलाने का और घोड़ा दौड़ाने का बहुत शौक था. इसके अलावा वो छूरी-भाला और कटारी चलाने का भी पूरा अभ्यास किया करते थे. 27 अप्रैल 1857 को दानापुर के सिपाहियों, भोजपुरी जवानों और अन्य साथियों के साथ आरा नगर पर बाबू वीर कुंवर सिंह ने कब्जा जमा लिया था. अंग्रेजों की लाख कोशिशों के बाद भी भोजपुर लंबे समय तक स्वतंत्र था.
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20 अप्रैल 1858 को आजमगढ़ पर कब्जे के बाद रात में कुंवर सिंह बलिया के मनियर गांव पहुंचे थे. 22 अप्रैल को सूर्योदय की बेला में शिवपुर घाट बलिया से एक नाव पर सवार हो गंगा पार करने लगे. इस दौरान अंग्रेजों की गोली उनके बांह में लग गई. तब उन्होंने यह कहते हुए कि 'लो गंगा माई! तेरी यही इच्छा है तो यही सही' खुद ही बाएं हाथ से तलवार उठाकर उस झूलती हाथ को काट गंगा में प्रवाहित कर दिया था. उस दिन बुरी तरह घायल हो गए थे. लेकिन कुंवर सिंह ने एक बार फिर हिम्मत जुटाई और उन्होंने जगदीशपुर किले से यूनियन जैक का झंडा उतार कर ही दम लिया. हालांकि बाद में वे अपने हाथ के गहरे जख्म को सहन नहीं पाए और अगले ही दिन 26 अप्रैल 1858 को वे मातृभूमि की रक्षा करते हुए शहीद हो गए थे.
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