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हर दम लोगों के लिए तैयार पुलिस वालों की दर्द भरी दास्तान, न चाहकर भी दबानी पड़ती है अपनी आवाज

तड़के सुबह से लेकर आधी रात तक ड्यूटी पर तैनात पुलिसवालों को जानिए कैसे दबानी पड़ती है अपनी आवाज.

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By Deepakshi | खबरें - 26 March 2021

साल 2019 नागरिकता संशोधन बिल (Citizenship (Amendment) Act, 2019) की आग में पूरा देश जल रहा था. उसी हंगामे के बीच एक तस्वीर ऐसी सामने आई जिसकी शायद ही किसी ने कल्पना की थी. उसमें एक लड़की गुस्सा दिखाने की बजाए गांधीगिरी को दर्शाते हुए दिखाई दी. वायरल हुई तस्वीर में लड़की एक पुलिस वाले को फूल देती नजर आई. इस बर्ताव को देखकर पुलिस वाला भी अपनी मुस्कुराहट को रोक नहीं पाया. लेकिन ऑन ड्यूटी होने की वजह से वो फूल न ले सका.

एक साधारण से परिवार में जन्में एसबीएस त्यागी इस बात को काफी अच्छे से महसूस करते हैं. उन्होंने वक्त के साथ-साथ ये समझा कि कद और उम्र नहीं बल्कि इंसान को ओहदे में भी बड़ा होना चाहिए. फिर क्या था मेहनत का पहिया चलने लगा और उन्होंने सन् 1984 में सिविल सर्विस ज्वाइन किया.

वक्त के तराजू से तौली ईमानदारी

दिल्ली पुलिस (Delhi Police) से जब अपनी नौकरी की शुरुआत कि तो ईमानदार होने का भूत सिर पर सवार था. ईमानदारी इतनी की तब 10 रुपए लेते हुए पुलिसवालों को भी डिसमिस कर दिया करते थे. लेकिन आज के वक्त के तराजू को देखते हुए उन्हें तकलीफ- सी होती है. कहां तो लोग आज 10 हजार करोड़ रुपये खाकर भी कोई सजा नहीं पाते हैं. वही, 10 रुपये के लिए कई पुलिस वालों की नौकरियां छीन ली गई.

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33 साल से ज्यादा समय तक नौकरी करने के दौरान हजारों कहानियों को इस अफसर ने अपने दिल के किसी कोने में दबाया हुआ है. हर कहानी के साथ एक अहसास जुड़ा हुआ है, जिसमें आम लोगों के खौफ और नफरत से भरी चीजें शामिल है. उन्होंने बताया कि हमने चाहा तो कसाब जैसे आतंकवादी को पूरे देश के गुस्से से दूर रखा वरना वो मॉब लिंचिंग का शिकार हो जाता. ऐसा नहीं है कि वो लोग कसाब पर गुस्सा नहीं थे लेकिन वो एक फेयर ट्रायल चाहते थे. 

पुलिस ही बनेगी बलि का बकरा

इसके बाद पुलिस की मौजूदगी में जेएनयू में घमासान हो जाता है. पढ़ने वाले वे बच्चे कसाब जैसे आतंकी से तो बड़े दिखते. लेकिन कई बार ऐसी वजहें सामने आती है  जिसके चलते लगता है कि पुलिस ही बलि का बकरा बनेगी. पुलिस वाले सस्पेंड होंगे और इंसाफ मिल जाएगा.

वैसे एक कहावत पुलिस वालों पर बिल्कुल फिट बैठती है 'गरीब की जोरू, गांव की भौजाई.' यानी पुलिस वालों की अपनी कोई आवाज नहीं है. आए दिन लोग उनसे नफरत करते हुए नजर आते हैं. कई बार उन्हें ये सुनना पड़ता है कि दिल्ली पुलिस चोर है. चाहते हुए भी वो इस पर सफाई नहीं दे सकते. पुलिस वालों की वर्दी को लेकर इतने भ्रम फैले हुए हैं कि वो आसानी से चाहकर भी दूर नहीं कर सकते हैं. 

इसके बावूजद कंट्रोल रूम में दिनभर में लाख से ज्यादा बार कॉल आते हैं. कोई घर बंद में घुस जाए तब 100 नंबर पर कॉल लगा देता है तो कही आग लग जाए तो भी कंट्रोल रूम का फोन घूमाया जाता है. इस तरह के यकीन के बावजूद आखिर पुलिस वालों से ही नफरत क्यों की जाती है?

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भद्दी गालियों के बाद भी लोगों को समझाते हैं पुलिसवाले


जब साल 2013-2014 में कई घोटालों को लेकर प्रदर्शन हो रहे थे तब कुछ लोग सड़कों पर उतर आए थे. इसके चलते नौकरीपेशा और पढ़नेवालों को काफी परेशानी हो रही थी. जब पुलिस वालों ने फसादियों को भीड़ जमा करने से रोका तो वो उल्टा उन पर ही चढ़ गए. उनकी भद्दी गालियों के बाद पुलिस वाले सिर्फ उन्हें समझाते थे.

बात करें निर्भया मामले की तो सभी लोगों को गुस्सा था. पूरा हिंदुस्तान हिला हुआ था. इस दौरान पुलिस वालों ने एड़ी से चोटी तकका जोर लगाते हुए 10 दिनों के अंदर-अंदर हजार पन्नों की चार्जशीट दाखिल की. उन्होंने पूरी जी-जान से ये काम किया. लेकिन बाद में उन्हीं 10 दिनों के काम पर 8 साल से ज्यादा वक्त हो गया लेकिन इंसाफ अभी तक इंतजार कर रहा है. इस बात पर भी लोगों को गुस्सा नहीं है बल्कि हमपर है.  हर पुलिस वाले का एक अधिकारी क्षेत्र होता है जिससे बाहर वो दखल नहीं दे सकते हैं.

हर मामले से जुड़ा गुस्सा पुलिस वालों पर ही निकाला जाता है. कहते है- पुलिसवाला झूठा है, पुलिसवाला है गलत ही करेगा. लेकिन सबकों ये समझना चाहिए कि पुलिसवाले ही हैं तो दिल्ली दिल्ली रह सकती है. यदि 20 घंटे भी पुलिस काम नहीं करें तो दिल्ली को पहचानना मुश्किल हो जाएगा. पुलिस की वर्दी पहने हुए इंसान की एक मां, बीवी, बच्चे और पिता भी होते है, जिसकी शक्ल देखे हुए न जाने उन्हें कितना वक्त हो जाता है.

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