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लोहड़ी उत्तर भारत का प्रसिद्ध त्योहार है. यह मकर संक्रांति से एक दिन पहले मनाया जाता है. यह त्योहार मकर संक्रांति की पूर्व संध्या पर मनाया जाता है. रात के समय खुली जगह में परिवार और आस-पड़ोस के लोग आग के किनारे एक घेरे में बैठ जाते हैं. लोहड़ी उत्तर भारत और खासकर पंजाब का सबसे प्रसिद्ध त्योहार है. इस दिन सभी लोग अपने घरों और चौकों के बाहर लोहड़ी जलाते हैं. भट्टी की कहानी सुनाते हुए दुल्ला आग का घेरा बनाकर रेवड़ी, मूंगफली और लावा खाता है. लेकिन आप जानते हैं क्यों जलाई जाती है यह लोहड़ी, क्या है इस दिन दुल्ला भट्टी की कथा का महत्व.
आप लोहड़ी कैसे मनाते हैं?
परंपरागत रूप से, लोहड़ी फसलों की बुवाई और कटाई से जुड़ा एक विशेष त्योहार है. इस दिन अलाव जलाया जाता है और उसके चारों ओर नृत्य किया जाता है. लड़के भांगड़ा करते हैं गिद्दा करतीं युवतियां और महिलाएं इस दिन मां विवाहित बेटियों को घर से कपड़े, मिठाई, रेवड़ी, फलाड़ी भेजती है. वहीं जिन परिवारों में लड़के की शादी हो चुकी है या जिन्हें बेटा हुआ है, उनसे पैसे लेकर बच्चे की रेवाड़ी पूरे मोहल्ले या गांव में बांट देते हैं.
लोहड़ी शब्द कहाँ से आया?
बहुत से लोग मानते हैं कि लोहड़ी शब्द की उत्पत्ति 'लोई' (संत कबीर की पत्नी) से हुई है, लेकिन कई लोग मानते हैं कि इसकी उत्पत्ति तिलोदी से हुई थी, जो बाद में लोहड़ी बन गई. वहीं कुछ लोगों का मानना है कि इस शब्द की उत्पत्ति 'लोह' से हुई है, जो चपाती बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला एक उपकरण है.
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