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विदेशी चीतों को इस वजह से कुनो के जंगलों में छोड़ा गया, ये है खासियत

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज मध्य प्रदेश में अफ्रीका के नामीबिया से लाए गए आठ चीतों को कुनो नेशनल पार्क छोड़ा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का आज (17 सितंबर को) जन्मदिन है. इस मौके पर भारत में चीता प्रोजेक्ट का उद्घाटन हुआ है.

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By विपिन यादव | खबरें - 17 September 2022

कुनो नेशनल पार्क में नामीबीया से भारत लाए गए चीतों को मध्य प्रदेश के कुनो नेशनल पार्क में पीएम मोदी ने छोड़ दिया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का आज (17 सितंबर को) जन्मदिन है. इस मौके पर भारत में चीता प्रोजेक्ट का उद्घाटन हुआ है. अब सवाल यह उठ रहे है कि, आखिर विदेशी चीतों को पुनर्वास के लिए मध्य प्रदेश के कुनो नेशनल पार्क को ही क्यों चुना गया है. भारत में और भी पार्क हैं आखिर उसमें क्यों नहीं रखा गया?


चीतों को कुनो नेशनल पार्क में छोड़ने की वजह 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज मध्य प्रदेश में अफ्रीका के नामीबिया से लाए गए आठ चीतों को कुनो नेशनल पार्क छोड़ा है. नामीबिया  में ग्रासलैंड यानी सवाना वुडलैंड का क्षेत्रफल 2.25 लाख वर्ग किलोमीटर है. जबकि कुनो नेशनल पार्क का पूरा क्षेत्रफल 3200 वर्ग किलोमीटर है. 17 सितंबर 2022 को यानी आज नामीबिया में तापमान 31-32 डिग्री सेल्सियस है. कुनो नेशनल पार्क में भी 30 डिग्री सेल्सियस तापमान है. नामीबिया और कूनो नेशनल पार्क का जलवायु अर्ध शुष्क रहता है.

आइए कुनो के कुछ महत्वपूर्ण बिन्दु पर नजर डालते हैं

1.जब भी किसी जानवर को एक देश से दूसरे देश में शिफ्ट किया जाता है. तब कई बातें देखी जाती हैं. जैसे- जेनेटिक्स कैसा है. व्यवहार कैसा है. उम्र सही है या नहीं. लिंग का संतुलन कैसा है. साथ ही जानवर एक देश से दूसरे देश जाकर वहां के वातावरण, रहने लायक जगह की स्थिति, शिकार के प्रकार आदि से एडजस्ट कर पाएगा या नहीं.

2. भारत की सरकार ने वाइल्डलाइफ (प्रोटेक्शन) एक्ट बनाया. जिसे 1972 में लागू किया गया. यानी देश में कहीं भी जंगली जीव का शिकार प्रतिबंधित है. जब तक इन्हेंमारने की कोई वैज्ञानिक वजह न हो. या फिर वो खतरा न बने. 


3.चीतों को ग्रासलैंड यानी थोड़े ऊंची घास वाले मैदानों इलाकों में रहना पसंद है. ये घने जंगलों में नहीं रहते. वजह अगर ये तेजी से दौड़ेंगे नहीं तो शिकारनहीं कर पाएंगे. तेजी से दौड़ने के लिए खुले मैदानों की जरूरत होती है. न कि घने जंगलों की. 

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4.मौसम में ज्यादा उमस न हो. थोड़ा सूखा रहे. इंसानों की पहुंच कम हो. तापमान बहुत ठंडा न हो. बारिश ज्यादा न हो. कूनो नेशनल पार्क 3200 वर्ग किलोमीटर में फैला लेकिन चीतों के हिसाब से उपयुक्त इलाका 748 वर्ग किलोमीटर है. यहां इंसान नहीं आते-जाते. न ही रहते हैं. 

5. चीतों को शुरुआत में 6 वर्ग किलोमीटर के फेंसिंग वाले बाड़े में रखा जाएगा. ताकि सारे चीते एकदूसरे से संपर्क साध सकें. एकदूसरे को समझ सकें. चीते सामाजिक प्राणी होते हैं. ये समूह में रहते हैं. इसलिए जब ये तीन नर चीते और 5 मादा चीते एकदूसरे से संपर्क और संबंध बना लेंगे तब इन्हें बाड़ों से मुक्त किया जाएगा.

6. नेशनल पार्क का अधिकतम औसत तापमान 42.3 डिग्री सेल्सियस रहता है. सबसे कम तापमान 6 से 7 डिग्री सेल्सियस रहता है. इलाके में सालभर में 760 मिलिमीटर बारिश होती है.

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7. किसी भी नेशनल पार्क या अभयारण्य में किसी शिकारी जीव को तब ही लाते हैं, जब उसके लिए खाने की पर्याप्त जीव हों. यानी शिकारी की संख्या के अनुपात में शिकार का होना जरूरी है. चीते उन जीवों का शिकार करते हैं जो औसतन 60 किलोग्राम या उससे कम वजन के होते हैं. 

8. कूनो नेशनल पार्क (Kuno National Park) में चीतों के लिए बहुत कुछ है. जैसे- चीतल, सांभर, नीलगाय, जंगली सुअर, चिंकारा, चौसिंघा, ब्लैक बक, ग्रे लंगूर,  लाल मुंह वाले बंदर, शाही, भालू, सियार, लकड़बग्घे, ग्रे भेड़िये, गोल्डेन सियार, बिल्लियां, मंगूज जैसे कई जीव. 

9.पेड़ों पर मौजूद बंदरों और लंगूरों की बात करें तो 10 फीसदी बंदर चीते के शिकार हो सकते हैं. नीलगाय या सांभर की बात करें तो इनकी आबादी 30 फीसदी हिस्सा चीतों के शिकार बनते हैं. 

10.चीता जमीन पर हो या पहाड़ी पर. घास हो या पेड़, उसे खाने की कमी नहीं होगी. यहां सबसे ज्यादा चीतल मिलते हैं. यानी चीतों के लिए पर्याप्त शिकार की व्यवस्था  है. चीतल की आबादी 38.38 से लेकर 51.58 प्रति वर्ग KM है.


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