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जिंदगी में कभी भी एक सी नहीं रहती है. यहां दुख और सुख का माहौल चलता ही रहता है. हर इंसान को जीवन में दुखों के दौर से गुजरना ही पड़ता है. दुख और तकलीफ के रास्ते से ही गुजरकर इंसान खुशियों को अपनी लाइफ में ला पाता है. दुनिया में शायद ही कोई इंसान ऐसा होगा जिसके जीवन में कभी कोई दुख न आया हो और जिसे किसी तरह की कोई तकलीफ न हुई हो लेकिन सभी अपने तकलीफ को अपने दुख को भूलकर जीवन में आगे बढ़ते है क्योंकि जीवन का दूसरा नाम ही सभी दुख, तकलीफों को भूलाकर आगे चलते रहना है ऐसा ही उदाहरण हम आपके सामने लेकर आए है. वो है चेन्नई के रहने वाले मणिकंदन की जिन्होंने न केवल अपने बचपन से ही दुखों को झेला है बल्कि उनसे उभर अपनी लाइफ में इतना बड़ा मुकाम हासिल किया जो सबके लिए एक प्रेरणा है.
जानिए मणिकंदन की प्रेरक कहानी के बारे में
आपको बता दें कि चेन्नई के रहने वाले मणिकंदन जब क्लास-2 में पढ़ते थे तो उनके पिता का निधन हो गया. पिता के स्वर्गवास हो जाने के बाद मणिकंदन के घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी जिसके बाद मां ने उन्हें अनाथालय भेज दिया. जिसमें अनाथालय में मणिकंदन से मिलने उनकी मां आती रहती थी. लेकिन जब 7वीं क्लास में जब मणिकंदन की मां उनसे मिलने आई तो उस दौरान वह स्कूल में थे तो वह स्कूल स्कूल चली गई. वहां से लौटने पर अनाथालय के बच्चों के न सिर्फ कपड़े धुलवाए गए बल्कि रसोई में खाना भी बनवाया गया. इसके बाद वह घर गई तो कभी लौटकर नहीं आई. मालूम करने पर चला कि उन्होंने आग लगाकर आत्महत्या कर ली है. जिसकी वजह से मणिकंदन इमोशनली पूरी तरह से टूट गए. यह वह दौर था जब वह सोचते थे कि उन्हें पुलिस बनना है. इसी बीच मणिकंदन की दयनीय स्थिति को देखकर एक डॅाक्टर फैमिली उनके घर का खर्च चलाने के लिए तैयार हो गई.
ग्रेजुएशन तक की पढ़ाई
वो कहते है वक्त बड़ा बलवान होता है. वक्त कभी किसी के लिए नहीं थमता है. ऐसा ही कुछ हुआ मणिकंदन की लाइफ में भी उन्होंने ने केवल वक्त के साथ चलना सीखा बल्कि उसको प्रेरणा बनाकर अपनी लाइफ में आगे बढ़े. मणिंकंदन ने Criminology से ग्रेजुएशन पास की. साल 2007 में सशत्र रिजर्व बल में नौकरी के लिए आवेदन किए. वहां उनका सिलेक्शन हो गया. अभी वह अंबूत्तर औद्योगिक क्षेत्र में तैनात हैं.
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