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आज से ठीक बीस साल पहले...दिनांक 13 दिसंबर 2001, सुबह तक सब कुछ सामान्य था. संसद का शीतकालीन सत्र शुरू हो चुका है. विपक्ष के सांसद कफन चोर, गद्दी छोड़कर राजगद्दी छोड़कर राज्यसभा और लोकसभा में हंगामा कर रहे थे. सेना खून बहाती है, सरकार दलाली खाती है. सदन को 45 मिनट के लिए स्थगित कर दिया गया. प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी संसद से घर जा चुके थे. हालांकि उपप्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी समेत अन्य सांसद संसद में ही मौजूद थे. तभी जैश-ए-मुहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा के पांच आतंकी सफेद एंबेसडर कार में संसद भवन परिसर में घुस जाते हैं. संसद भवन के गेट पर एक आतंकी ने खुद को बम से उड़ा लिया.
उप राष्ट्रपति का इंतजार कर रहे थे ड्राइवर शेखर
उपराष्ट्रपति के ड्राइवर शेखर राज्यसभा के गेट नंबर 11 के बाहर संसद में उनके आने का इंतजार कर रहे थे. तभी धमाके की आवाज सुनते ही शेखर की नजर दूसरी तरफ हो जाती है. कुछ ही देर में उन्हें कुछ समझ में आया कि उनके नीचे उतरते ही आतंकियों ने उनकी कार में टक्कर मार दी और गोलियां चलाने लगे. शेखर अपनी जान बचाते हुए कार के पीछे छिप जाता है. इसके तुरंत बाद, उपराष्ट्रपति के सुरक्षा गार्ड भी कार्यभार संभाल लेते हैं और दोनों ओर से गोलियां चलने लगती हैं.
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