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कृषि बिल को लेकर गुरुवार से किसानो का आंदोलन जारी है जो किसी भी प्रकार से थमने का नाम नहीं ले रहा हैअब । जिसको देखते हुए कृषि मंत्री ने 3 दिसंबर को होने वाली बैठक से मात्र दो दिन पहले यानि की आज मंगलवार को प्रदर्शनकारी किसान समूहों को बातचीत करने के लिए बुलाया है। वहीं दूसरी तरफ केंद्र सरकार ने ठंड और कोरोना वायरस का हवाला देते हुए तुरंत बातचीत करने की किसानों की मांग को टालने का प्रयास किया है। इस तरह से धीरे-धीरे दिल्ली-हरियाणा सीमा पर जारी विरोध और गतिरोध का आज छठवां दिन शुरू हो गया है, जिसमें ज्यादातर किसान अपने ट्रैक्टरों और ट्रॉलियों के साथ आंदोलन में शामिल हो रहे हैं। यहां तक कि सरकार ने 3 नए खेत कानूनों को खत्म करने की अपनी मांगों पर बातचीत के लिए किसानों को आमंत्रित किया, आंदोलनकारी किसानों ने कहा कि केंद्र ने 32 के बजाय देश भर के सभी 500 किसानों को आमंत्रित किया है। इस बीच, सिंघू सीमा और टिकरी सीमा दोनों को यातायात के लिए बंद कर दिया गया है क्योंकि केंद्र के कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों को ’दिल्ली चलो’ मार्च के तहत दिल्ली में घुसने की अनुमति नहीं मिली है उसके बाद भी राजमार्ग पर किसान धरना देकर बैठे हैं और आंदोलन जारी है।
एसएफआई छात्र संघ के सैकड़ों कार्यकर्ताओं ने सोमवार को कोलकाता में केंद्रीय किसान सुधार कानूनों के खिलाफ दिल्ली की सीमाओं पर विरोध प्रदर्शन कर किया और किसानों के साथ एकजुटता से रैली भी निकाली। रैली के प्रतिभागियों ने शहर और अन्य जगहों के विभिन्न कॉलेजों और विश्वविद्यालयों से, नए फार्म कानूनों के खिलाफ नारे भी लगाए।
केंद्र के कृषि कैप्टन अमरिंदर सिंह के खिलाफ किसानों की लड़ाई को जायज करार देते हुए पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने सोमवार को केंद्र से पूछा कि वह इस मुद्दे पर अड़े हुए हैं और किसानों की बात नहीं सुन रहे हैं। प्रधान मंत्री के इस रुख पर कि नए कानून किसानों के लिए फायदेमंद थे, मुख्यमंत्री ने कहा कि पीएम नरेंद्र मोदी शुरू से ही इस लाइन को बनाए हुए थे, यही वजह थी कि पंजाब के किसानों को निकलकर आगे आना पड़ा। कैप्टन अमरिंदर ने राष्ट्रपति को अग्रेषित करने के बजाय उन फार्म बिलों पर बैठने के राज्यपाल के फैसले पर सवाल उठाया।
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